आधी नींद और जाग के दौरान मैंने पाया
जिस सोफे पर मैं लेटा हूँ वह सो रहा है
टी-टेबुल पर रखी चाय ठंडी हो रही प्याली में
और मेज भी चुप कि उनींदी-उनींदी सी
बाहर गली में शायद जुलूस था कोई नारे लगाता
सीधा प्रसारण हो रहा था न्यूज चैनल पर उसका
भीतर और बाहर का शोर नहीं डाल पा रहा था खलल
कि इस तरह नींद गहराती जा रही थी हर सिम्त
डगमगाते कदमों से उठ खिड़की खोलने का विकल्प था
मेरे लिए शेष जिसे मैं नहीं चुन पा रहा।